CAA : दोस्तो,आखिरकार मोदी सरकार ने चुनाव के ठीक पहले CAA को लागू कर ही दिया। आज 11 मार्च को इसके नियम भी नोटिफाइड कर दिए गए हैं। आज हम आपको बताएँगे की नए रूल्स और 4 साल में क्या बदला है। किसे मिलेगी नागरिकता और किसे नहीं मिलेगी नागरिकता। साथ ही जानेंगे कि क्या सही में यह कानून संविधान के खिलाफ है। CAA सिटिजनशिप अमेंडमेंट एक्ट नागरिकता संशोधन कानून। उसके नोटिफिकेशन जारी कर दिए गए हैं। केंद्र सरकार ने इसे सोमवार को लागू कर दिया। सीट को लेकर नोटिफिकेशन जारी कर दिया गया है। तो दोस्तो, 11 दिसंबर 2019 को यह एक्ट संसद में पास हुआ था जिसके बाद पुरे देश में इसके खिलाफ प्रोटेस्ट हुआ था। Shahinbag का प्रोटेस्ट काफी चर्चा में रहा था। अब CM का जिन्न फिर से मोदी सरकार ने चुनाव के बिल्कुल पहले निकाल दिया है। बताने की जरूरत नहीं है कि अभी क्यों किया जा रहा है। आप लोग समझदार हैं। यह कानून कहता है कि बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों से जो लोग भागकर भारत में आए हैं और वे हिन्दू, ईसाई, सिख, जैन, बौद्ध या पारसी हैं, मतलब मुस्लिम नहीं हैं। उनको एक सीए की वेबसाइट पर अपना रजिस्ट्रेशन कराना होगा, जिसके बाद सरकार जांच करेगी और उसके बाद उनको नागरिकता दे दी जायेगी। सिटीजनशिप मिल जायेगी। इन लोगों से कोई कागज या दस्तावेज डॉक्यूमेंट्स नहीं मांगे जाएंगे। इसकी कटऑफ डेट है 30 दिसंबर 2014। मतलब की इसके बाद जो लोग आए हैं चाहे वह मुस्लिम हों या न हों, उनको नागरिकता सरकार नहीं देगी। नोटिफिकेशन के मुताबिक नागरिकता देने या फिर न देने का पूरा अधिकार सेंट्रल गवर्नमेंट के पास है। सबकुछ ऑनलाइन होगा। जिन लोगों ने पहले ऑफलाइन अप्लाई किया था, उनके मामलों को भी ऑनलाइन में ही कन्वर्ट कर दिया जाएगा। आईएस कानून की पेचीदगियों को समझने के लिए हम जान लेते हैं थोड़ा इसका इतिहास। तो दोस्तो नागरिकता संशोधन बिल यानि की सिटिजनशिप अमेंडमेंट एक्ट पहली बार दो हज़ार 16 में लोकसभा में पेश किया गया था। यहां से तो यह पास हो गया था, लेकिन राज्यसभा में अटक गया था। दिसंबर 2019 में इसे लोकसभा में दोबारा पेश किया गया और इस बार यह बिल लोकसभा और राज्यसभा दोनों जगहों से पास हो गया। इसके साथ ही 10 जनवरी 2020 को राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिल गई थी। लेकिन प्रोटेस्ट के बाद भी यह कानून होल्ड पर सरकार ने रख दिया था और अब चुनाव से ऐन पहले इसे लागू करने के लिए नोटिफिकेशन जारी कर दी गई है। हालांकि हमें साल के शुरुआत से ही इसकी जानकारी मिलने लगी थी कि सरकार ऐसा कुछ कर सकती है और फाइनली ऐसा कर दिया गया। लेकिन अब सवाल उठता है कि अभी तक चार सालों से सरकार ने इसे होल्ड करके क्यों रखा था? क्या बदल गया है? सीकर। चार साल तक ठंडे बस्ते में पड़े रहने के कई सारे कारण रहे हैं। सबसे पहला तो यही था कि पूरे देश में खासकर नॉर्थ ईस्ट के स्टेट्स में इसे लेकर जबरदस्त प्रोटेस्ट चालू हो गया था। खासकर असम और त्रिपुरा जैसे स्टेट्स में भयंकर प्रोटेस्ट हुआ था। मैं उस वक्त असम गया था और वहां से रिपोर्टिंग भी की थी। Shahinbag में भी काफी दिनों तक प्रोटेस्ट हुए थे, क्योंकि इसे संविधान के खिलाफ माना गया था। सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं भी लगाई गई थीं और लोगों ने तर्क दिया था कि इसमें मुस्लिमों को शामिल क्यों नहीं किया गया। फिर इसके बाद दिल्ली में दंगे हुए और फिर देशभर में करुणा की वजह से आंदोलनों को बंद कराया गया। दिल्ली दंगे और प्रोटेस्ट को लेकर बहुत सारे लोगों की गिरफ्तारियां हुई, यूएपीए लगा और इसी सब में चार साल निकल गए। सरकार एक्सटेंशन लेती रही क्योंकि प्रेसिडेंट के साइन के बाद छह महीने के अंदर कानून के नियम बनाए जाने चाहिए। लेकिन अब साहब का वचन ही शासन है तो क्या टेंशन?
किसको मिलेगी नागरिकता ?
अब आता है असली सवाल कि किसको मिलेगी नागरिकता या फिर। सही सवाल यह होगा कि किसको नहीं मिलेगी नागरिकता? पहले ही साफ कर दिया गया है कि नागरिकता देने का अधिकार पूरी तरह से मोदी सरकार के पास है। पड़ोसी देश अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिन्दू, सिख, जैन, पारसी, बौद्ध और इसाई इन समुदायों से आने वाले प्रवासियों को यानी कि रिफ्यूजी को भारतीय नागरिकता देने के लिए फिफ्टी फाइव के सिटिजनशिप एक्ट में अमेंडमेंट किया गया है। जिसमें ऐसे लोग जो अपने देशों में धार्मिक उत्पीड़न यानी की रिलीजियस प्रोसीक्यूशन से तंग आकर 31 दिसंबर 2 हज़ार 14 से पहले भारत में आकर शरण ले चुके हैं, रिफ्यूजी हैं। इन सभी को ऑनलाइन पोर्टल से नागरिकता के लिए अप्लाई करना पड़ेगा। वीडियो रिकॉर्ड किए जाने तक यह पोर्टल लॉन्च नहीं हुआ था। जैसे ही होगा हम आपको पोर्टल का लिंक डिस्क्रिप्शन बॉक्स में दे देंगे। ध्यान रहे कि इस कानून के तहत उन लोगों को अवैध प्रवासी माना गया है, जो भारत में पासपोर्ट और वीजा के बगैर घुस आए हैं या फिर डॉक्युमेंट्स के साथ तो भारत में आए हैं, लेकिन वापस नहीं गए। ऐसा पाकिस्तान से आने वाले कई सारे हिंदू पाकिस्तानी हिंदू करते हैं। अब अगला और सबसे जरूरी सवाल यह है कि किसे नहीं मिलेगी नागरिकता?हालांकि इससे पहले हमारे देश के गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि हमारे देश के मुस्लिम भाइयों को भड़काया जा रहा है। ये सिर्फ बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों के माइनॉरिटीज को इंडियन सिटिजनशिप देने के लिए है। इससे किसी भी भारतीय यानी कि इंडियन सिटिजन की सिटिजनशिप नहीं ली जाएगी। लेकिन सबसे बड़ा झोल यहीं पर है। झोल इसलिए है क्योंकि ये बात सही है कि भारतीय नागरिकों की नागरिकता नहीं ली जाएगी। लेकिन आप भारतीय नागरिक हैं। पहले आपको यह तो साबित करना पड़ेगा। आपसे कागज मांगा जाएगा आप क्योंकि मुस्लिमों को छोड़कर बाकी धर्मों के लोगों को ही इस देश में नागरिकता मिलेगी। तो ऐसे में इस देश के वो मुस्लिम जो ये साबित नहीं कर पाएंगे कि उनके पास पुराने कागज हैं, उनका क्या होगा ये अमित शाह जी ने नहीं बताया। क्योंकि अगर किसी हिंदू के पास कागज नहीं भी है तो उसको नागरिकता सरकार दे देगी लेकिन मुस्लिमों को नहीं। ये इस कानून में है। यही वो सबसे बड़ी दुविधा भी है जिस पर सरकार अपना स्टैंड क्लियर नहीं कर रही थी और इसको लेकर तस्वीर अभी तक साफ नहीं हो पाई है। कानून तो हमारे पास पहले से है एक नागरिकता का जो ये कहता है कि अगर किसी को भारत की नागरिकता चाहिए तो उसके लिए कम से कम 11 साल तक देश में रहना जरूरी है। लेकिन CAA में बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान देशों के गैर मुस्लिमों को 11 साल के बजाय छह साल रहने पर ही नागरिकता दे दी जाएगी। बाकी दूसरे देश के लोगों को 11 साल का वक्त भारत में गुजारना होगा, भले ही फिर वह किसी भी धर्म के हों। दरअसल, इन तीनों ही देशों में रहने वाले अल्पसंख्यक या माइनॉरिटी के खिलाफ अत्याचार होने की खबरें समय समय पर आती रहीं हैं और कहा जाता है कि मुस्लिमों के पास तो कई देश हैं, लेकिन हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध या पारसियों के पास भारत के अलावा कोई ऑप्शन नहीं है। इसलिए उनको नागरिकता मिलनी चाहिए। हालांकि दूसरे राज्य वाले भी इसका विरोध करते रहे हैं। जैसे कि अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड और त्रिपुरा जैसे राज्यों में अलग अलग कारणों से बाहरी लोग बसे हैं। अगर यह लागू होता है तो मुसलमानों को छोड़कर बाकी धर्म के लोगों को नागरिकता मिल जायेगी। जिसका भी विरोध हो रहा है जैसे बड़ी संख्या में असम में बांग्लादेश के हिन्दू बसे हुए हैं, लेकिन असम के लोगों को लगता है कि सीएए के बाद उनको नागरिकता मिल जाएगी तो उनके रिसोर्सेज में एक तरह से बाहरी लोग सेंध लगाएंगे। इसलिए वे नहीं चाहते हैं कि CAA के तहत बाहरी लोगों को नागरिकता सरकार दे, चाहे वह हिंदू हों या फिर मुसलमान। अब जान लेते हैं कि क्या वाकई यह जो कानून है, वह अन कॉन्स्टिट्यूशनल है, असंवैधानिक है। दरअसल हमारे देश के संविधान का आर्टिकल तीन कहता है कि कोई भी किसी भी धर्म या जाति का हो, उसके साथ भेदभाव नहीं होना चाहिए। लेकिन यह कानून इस समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है क्योंकि इसमें मुस्लिमों को शामिल नहीं किया गया। इसके अलावा देश में पहली बार कोई कानून बना है जो धर्म के आधार पर भेदभाव करता है। इसके पीछे लोगों का तर्क होता है कि बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान में इस्लाम धर्म को मानने वाले लोग मेजोरिटी में हैं। इसलिए उनके साथ धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं होता होगा। लेकिन ऐसा नहीं है। पाकिस्तान के अहमदिया मुसलमानों, बलूचों, अफगानिस्तान के हजारा, शिया मुसलमानों के साथ दुर्व्यवहार की खबरें आती रहती हैं। उनको मारने पीटने जाने की खबरें हम सुनते पढ़ते रहते हैं। अगर मुस्लिमों के साथ वहां पर डिस्क्रिमिनेशन नहीं भी होता तो भी भारत धर्म के आधार पर किसी को नागरिकता दे या ले नहीं सकता। यह हमारा संविधान कहता है। अगर संविधान की मानें तो भारत हिन्दू मुसलमानों का नहीं इंसानों का देश रहा है हमेशा से।
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