Imran Khan : Pakistan के प्रधानमंत्री फिर से बने | क्या ये सच हैं की इमरान खान PM बने ?

Pakistan Election Reviews 2024 : पाकिस्तान का इतिहास ही अगर देखा जाए तो यह साफ साफ नजर आता है कि उस देश में राजनीतिक पकड़ नेता पार्टियों से ज्यादा पाकिस्तानी सेना की है। हर फैसले में सेना सरकार पर हावी होती नजर आई है। या यूं कहें जब से पाकिस्तानी सेना की स्थापना हुई तब से ही सेना पावर में रही है। पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री और कई नेता इस बात पर कई बार हामी भी भर चुके हैं। Imran Khan ही बोल थे कि पाकिस्तान में सत्ता किसी के पास हो लेकिन ताकत सेना के हाथ में ही रहती है। दखल और रुतबा भी फौज का ही रहता है। अगर कोई इस बात से इंकार कर रहा है तो वह बिल्कुल ही गलत है। ऐसा खुद इमरान खान ने कहा था। विदेशी मामलों के जानकार भी यह कहते आए हैं कि पाकिस्तान की जनता यह अच्छी तरह से जान गई है कि देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव असल में हो ही नहीं सकते। लेकिन कैसे?

यह पाकिस्तानी सेना सरकार की बैकिंग पावर बन गई है और क्यों? ऐसा कहा जाता है कि अगर पाकिस्तान का पीएम बनना है तो उसे सेना का फेवरिट होना पड़ेगा। एक समय पर इमरान खान भी सेना के फेवरिट थे, लेकिन अब कहानी कुछ और ही दिखाई देती है। कहीं न कहीं यह भी कहा जाता है कि नवाज शरीफ की सत्ता में बार बार वापसी सेना की वजह से ही मुमकिन हो पाई है। खैर, यह सारा खेल है। Click Here

Imran Khan
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दरअसल इस कहानी के लिए थोड़ा पीछे चलते हैं। पाकिस्तानी सेना की नीव ब्रिटिश इंडियन आर्मी से पड़ी थी और तब ब्रिटिश जरनल फ्रैंक मिस्री इसके पहले सेना प्रमुख थे। लेकिन इस सेना ने राजनीति में दखल क्यों बनाई रखी, इसके पीछे कई कारण हैं। कई रिपोर्ट्स में इसके अलग अलग कारण दिए गए हैं। पहला कारण यह है कि सेना का दबदबा इसी कारण है क्योंकि भारत से युद्ध में हार के बाद भारत से खतरा बताया जाता है। पाकिस्तान को तख्ता पलट का यह सिलसिला पाकिस्तान की आजादी मिलने के बाद ही शुरू हुआ था। साल 1958 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति की गद्दी इस्कंदर अली मिर्जा ने संभाली थी और उस समय पाकिस्तानी सेना के चीफ जनरल अयूब खान थे, जो इस्कंदर को सपोर्ट करते थे। लेकिन अयूब खान के कहने पर ही इस्कंदर ने पाकिस्तान के संविधान को बर्खास्त किया था और मार्शल लॉ लागू किया था। खैर, था तो यह जनरल का ही फैसला। इसे ही सेना का पहला तख्तापलट माना जाता है। फिर 1979 में जनरल जिया उल हक ने पाकिस्तान पर सबसे पहला कड़ा शासन किया। उसने तानाशाह की तरह पाकिस्तान पर राज किया। देश में मार्शल लॉ लागू किया, संविधान की मर्यादा को तार तार किया और नेशनल और स्टेट एसेंबली को भी भंग किया। राजनीतिक दलों पर रोक लगाई और चुनावों को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया। उम्मीद की जा रही थी कि हालात कहीं न कहीं बदलेंगे, लेकिन ऐसा हुआ ही नहीं। पाकिस्तान और बेपटरी होता गया। पाकिस्तान के आम चुनावों में जब नवाज शरीफ की जीत हुई तो प्रधानमंत्री बनने के बाद नवाज ने सेना प्रमुख की कमान भी जनरल परवेज मुशर्रफ के हाथों में सौंप दी। समय के साथ मुशर्रफ ने अपनी रणनीति से ताकत में इजाफा किया और करगिल युद्ध के लिए भी मुशर्रफ को ही जिम्मेदार माना गया था। कुल मिलाकर देखा जाए तो पाकिस्तानी सेना कोई जंग जीत नहीं पाई थी और कोई चुनाव हार नहीं पाई थी। दूसरा कारण यह रहा है कि कहीं न कहीं पाकिस्तान की इकॉनमी पर पाकिस्तानी सेना का दबाव दिखने लगा था। कारण यह था कि पाकिस्तानी सेना के कई रिटायर्ड और बड़े अधिकारी देश की कई संस्थानों के प्रमुख थे। इसके साथ साथ देश की आर्थिक स्थिति भले ही खराब थी, लेकिन पाकिस्तानी सेना की संपत्ति में कभी कोई कमी नहीं आई। दो हज़ार 16 तक की रिपोर्ट्स की मानें तो सेना अपने इजाफे से कई संस्थानों को चला रही है और इनका बिजनस करीब एक पॉइंट 5,00,000 करोड़ रुपये का है। पाकिस्तान की सेना दुनिया की एक मात्र मिलिट्री है जिसका बिजनस देश के अंदर भी है और विदेशों में भी फैला हुआ है और इसकी वजह से ही पाकिस्तान की इकॉनमी पर भी इसका अच्छा खासा फर्क पड़ता है। और कहीं ना कहीं यह भी एक कारण है जिसकी वजह से पाकिस्तानी सेना का सत्ता से कभी हाथ जाता ही नहीं है। लेकिन कहीं ना कहीं हमें यह भी देखने को मिला है कि पाकिस्तानी मुस्लिम लीग के नेता और पाकिस्तान के पूर्व पीएम नवाज शरीफ सेना के फेवरिट रहे हैं और यही कारण भी है कि वह बार बार सत्ता में वापसी करते हैं। इसका तर्क कुछ इस तरह से भी दिया जाता है कि नवाज शरीफ ने जब राजनीति में अपने कदम रखे थे, तब वह सेना के जनरल जिया उल हक के करीबी थे। नवाज शरीफ पाकिस्तान के इंडस्ट्रियल ग्रुप इत्तेफाक ग्रुप के मालिक हैं और देश के सबसे अमीर लोगों में गिने जाते हैं। उनका समूह स्टील का कारोबार करता है और धीरे धीरे जब वह पीएम बने थे तब उन्होंने सेना की ताकतों को कम करने की पूरी कोशिश की थी। लेकिन उसका अंजाम भी यही हुआ कि उन्हें अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी। फिलहाल पाकिस्तान की राजनीति में बहुत नाजुक दौर चल रहा और नवाज शरीफ खुद को एक लीडर के तौर पर पेश कर रहे हैं। वह अपने पिछले कामों का हवाला दे रहे हैं और यह भी कह रहे हैं कि देश की अर्थव्यवस्था को वह कहीं ना कहीं सुधार देंगे और अभी वह सेना के करीब भी नजर आ रहे हैं। 

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