Indian Technology : भारतीय स्टार्टअप और वैज्ञानिकों को चैलेंज किस हद तक जा सकता है, इसे किसी देश में सोचा भी नहीं था और भारतीय वैज्ञानिकों ने कुछ ऐसे स्टार्टअप खड़े कर दिए हैं, जिससे चीन और जर्मनी जैसे डेवलप्ड देशों के पसीने छूटने लगे हैं। दोस्तों आज हम बात कर रहे हैं डिफेंस सेक्टर में यूज होने वाले कुछ वेपंस के बारे में जिन्हें DRDO और एलएनटी के द्वारा इंडीजीनस टेक्नोलॉजी पर डेवलप किया जा चुका है। जहां एक खबर चर्चा में बनी हुई है कि भारत की आर्गेनाईजेशन डीआरडीओ और एलएनटी ने मिलकर इंडियन डिफेंस में आधुनिक तौर पर प्रयोग होने वाले मॉड्यूलर ब्रिज को स्वदेशी तौर पर विकसित कर लिया है और भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा स्वदेशी तौर पर मॉड्यूलर ब्रिज का डेवलप किया जाना यह भारत के लिए एक नई कामयाबी के तौर पर देखा जा रहा है। यानी की देखा जाए तो जर्मनी ने भारत को टैंक्स में इस्तेमाल होने वाले इंजन की सप्लाई को बंद करके भारत को डिफेंस मामले में जो पीछे करना चाहते हैं वही अब भारतीय कंपनियों की सफलता को देख उनकी भी बोलती बंद हो चुकी है।
भारतीय वैज्ञानिक अगर किसी भी स्टार्ट अप को अपनी ईगो पर ले लें तो उस सेक्टर में भारतीय कंपनी को आगे बढ़ने से कोई भी नहीं रोक सकता। और हाल ही में डिफेंस सेक्टर में भारतीय कंपनी डीआरडीओ यानी डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन और एलएनटी ने मिलकर डिजाइनिंग से लेकर मैन्यूफैक्चर तक इंडीजीनस टेक्नोलॉजी पर मॉड्यूलर ब्रिज को डेवलप कर लिया है और यह मॉड्यूलर ब्रिज इंडियन डिफेंस के लिए गेमचेंजर साबित होने वाला है, क्योंकि इसकी रिक्वायरमेंट इंडियन डिफेंस को काफी समय पहले से ही थी। देखिए, अगर मॉड्यूलर ब्रिज की बात की जाए तो यह एक मैकेनिकल रूप से लॉन्च किया गया सिंगल स्पैन और पूरी तरह से डेक वाला 46 मीटर का असॉल्ट ब्रिज है। यानि की यदि इस पर बमबारी भी कर दी जाए तो भी इस पर कोई भी फर्क नहीं पड़ने वाला, जोकि बेसिकली इंडियन आर्मी को नहरों और खाइयों जैसी बाधाओं को आसानी से पार करने में सक्षम बनाता है। यह भारतीय सेना के इंजीनियरों की महत्वपूर्ण ब्रिजिंग क्षमता को और भी ज्यादा बढ़ाएगा, क्योंकि यह पुल अत्यधिक गतिशील और मजबूत होने के साथ साथ त्वरित तैनाती और री असेम्बल के लिए डिजाइन किए गए हैं, जो मशीनीकृत परिचालन की तेज गति वाली प्रकृति के अनुरूप हैं। यानि की इससे प्राकृतिक को भी किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं होगा। इसके अलावा सबसे बड़ी बात यह है कि भारत के डीआरडीओ और एलएनटी ने मिलकर जो मॉड्यूलर ब्रिज डेवलप किया है, इसे पूरी तरह से इंडीजीनस टेक्नोलॉजी पर बनाया गया है और इसमें किसी भी दूसरे देशों से इंपोर्ट होने वाले एक भी इलेक्ट्रॉनिक और मशीनरी कॉम्पोनेंट का यूज नहीं किया गया है। बल्कि इसमें यूज होने वाले सभी मशीनरी और इलेक्ट्रॉनिक कॉम्पोनेंट पूरी तरह से मेड इन इंडिया है। जहां भारत का पूरी तरह से स्वदेशी तौर पर डिफेंस सेक्टर में यूज होने वाले मॉड्यूलर ब्रिज को डेवलप करना भारत के लिए एक गर्व की बात है। हालांकि अभी भारत की कंपनियों ने इसे डेवलप करने की शुरुआत की है, जबकि आने वाले चार सालों के भीतर इसी तरह 41 सेट और माड्यूलर ब्रिज इंडियन डिफेंस के लिए डेवलप किए जाएंगे। लेकिन यदि दूसरे देशों से माड्यूलर ब्रिज बनाने के आर्डर रिसीव होते हैं तो इसी बीच उनको भी मैन्यूफैक्चर किया जायेगा। फिलहाल इंडियन डिफेंस सेक्टर में मॉड्यूलर ब्रिज शामिल हो जाने के बाद इंडियन आर्मी के लिए यह गेम चेंजर साबित होने वाला है। आपको बता दें कि पिछले कई सालों से हम इंडियन डिफेंस सेक्टर में यूज होने वाले हथियारों को ज्यादातर फ्रांस, जर्मनी और रूस जैसे देशों से खरीदते हैं। जहां हम अभी तक छोटे वेपन से लेकर बड़े हथियारों तक के लिए इन्हीं देशों पर डिपेंडेंट थे। लेकिन लगभग पिछले चार सालों से भारत की डीआरडीओ आर्गेनाइजेशन और एलएनटी कंपनी ने मिलकर इंडियन डिफेंस में यूज होने वाले वेपंस, मिसाइल, टैंक्स और एयरक्राफ्ट मैन्यूफैक्चरिंग पर विशेष ध्यान दिया है। जिससे आज भारत इस मुकाम पर पहुंच चुका है कि भारत में मौजूद ज्यादातर वेपंस, मिसाइल, एयरक्राफ्ट और टैंक्स। भारत ने स्वदेशी तौर पर डिजाइन से लेकर डेवलप किए गए हैं और देखा जाए तो भारत का डिफेंस एक्सपोर्ट भी इस समय दूसरे देशों में बढ़ रहा है। जहां हाल ही में एक रिपोर्ट सामने निकलकर आई थी। जिसमें यह बताया गया कि। भारत का जो डिफेंस एक्सपोर्ट है वह इस समय 16 हज़ार करोड़ को टच कर चुका है और यह अनुमान लगाया जा रहा है कि भारत का जो एन्युअल डिफेंस प्रोडक्शन है, वह आने वाले चार सालों में यानी कि दो हज़ार 28 तक 3,00,000 करोड़ के करीब पहुँच जायेगा। जिसके साथ साथ भारत का डिफेंस एक्सपोर्ट भी 50,000 करोड़ के करीब होने वाला है। यहाँ तक कि अर्जुन मार्क वन टैंक्स को बनाने का आर्डर भी अफ्रीका से भारत को रिसीव हो चुका है। जिसमें भारत अफ्रीका के लिए 118 अर्जुन मेन बैटल टैंक बना रहा है और अभी तक इसमें जर्मनी के इंजन का इस्तेमाल किया जा रहा था।
Indian Scientist : लेकिन जर्मनी ने इसके इंजन को देने से मना कर दिया। फिलहाल भारत की डीआरडीओ और एल एंड टी ने इन टैंकों में इस्तेमाल होने वाले इंजन की मैन्युफैक्चरिंग टेक्नोलॉजी पर काम करना शुरू कर दिया है। भारत के डिफेंस इंडस्ट्री को आगे बढ़ता देख जर्मनी ने अर्जुन टैंकों में इस्तेमाल होने वाले इंजन भारत को देने से मना कर दिया, जिससे भारत की डिफेंस इंडस्ट्री पीछे चली जाए और दूसरे देश डिफेंस इक्विपमेंट जर्मनी से ही खरीदें। लेकिन जर्मनी ने भारत के खिलाफ जो चाल चली थी उनकी यह चाल भी फेल हो चुकी है और भारत की डिफेंस इंडस्ट्री पीछे जाने के बजाय और भी आगे बढ़ रहा है। वैसे आपको बता दें कि अभी तक इंडियन डिफेंस में इस्तेमाल होने वाले मॉड्यूलर ब्रिज फ्रांस से खरीदे जा रहे थे क्योंकि फ्रांस भी डिफेंस इंडस्ट्री के मामले में काफी अच्छा प्रोड्यूसर माना जाता है। लेकिन भारत ने जो मॉड्यूलर ब्रिज डेवलप किया है वह पूरी तरह से स्वदेशी तौर पर आधुनिक रूप से डिजाइन किए गए हैं, जो फ्रांस से खरीदे जाने वाले मॉड्यूलर ब्रिज से पूरी तरह डिफरेंट है और इसकी सर्वाइवल और क्षमता फ्रांस से खरीदे जाने वाले मॉड्यूलर ब्रिज से कहीं ज्यादा है, जिससे इंडियन आर्मी इसे लंबे समय तक और कठिन से कठिन सिचुएशन में भी इस्तेमाल कर सकती है और इसीलिए जो देश अभी तक मॉड्यूलर ब्रिज फ्रांस से खरीदते थे, उन देशों की तरफ से भारत को मॉड्यूलर ब्रिज बनाने के आर्डर रिसीव हो सकते हैं। क्योंकि अफ्रीका रूस से टैंक्स को खरीदता था। लेकिन भारत में बने अर्जुन बैटल टैंक जब खेमें में शामिल हुआ तो अफ्रीका ने रसिया टैंक की बजाय इंडियन अर्जुन टैंक को बनाने का आर्डर दे दिया है। जिससे अनुमान लगाया जा रहा है कि मॉड्यूलर ब्रिज बनाने का भी आर्डर बड़ी संख्या में इंडियन ऑर्गेनाइजेशन डीआरडीओ को रिसीव होने वाला है। इसके अलावा एक खबर निकलकर आई है कि भारत के डीआरडीओ ने जो ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल बनाई है उसे अरब देश भी खरीदना चाहते हैं। क्योंकि ज्यादातर अरब देशों के पास सुखोई थर्टी फाइटर जेट मौजूद है, जिनमें आसानी से ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल को इंस्टॉल किया जा सकता है। यानि की कुल मिलाकर अब भारत डिफेंस इंडस्ट्री में उन देशों को टक्कर देने वाला है जो अभी तक भारत के डिफेंस इंडस्ट्री में एक्टिव न होने का फायदा उठा रहे थे।
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