Computer को कैसे बनाया और कब और कौन?

दोस्तों जब भी कंप्यूटर की बात की जाती है तो अक्सर यह सवाल आता है कि इतने यूजफुल और एडवांस डिवाइस का आविष्कार किसने किया था। इसके अलावा दिमाग में यह सवाल भी गूंजता है कि क्या आज बिना कंप्यूटर के हमारी जिंदगी ऐसी रहती है जिसमें सूचनाओं के साथ साथ बड़े बड़े सवालों का जवाब मिनटों में मिल पाता। खैर, यह सब सवाल तो एक्सेप्टेंस के सवाल हो गए, लेकिन आखिर कैसे हुआ था कंप्यूटर का आविष्कार और भारत में कैसे पहुंची कंप्यूटर की तकनीक? इन सब सवालों के जवाब के लिए बने रहिए हमारे साथ। दोस्तों मैथमेटिक्स और इन्वेंटर चार्ल्‍स बैबेज ने सबसे पहले इलेक्‍ट्रॉनिक Computer का आविष्कार किया था, जिसे दुनिया का सबसे पहला कंप्यूटर माना जाता है। कई लोग ये भी मानते थे कि 1622 में ऐबक के जैसी एक मशीन जोकि विलियम आउटलेट के द्वारा बनाई गई थी, उसे दुनिया का सबसे पहला कंप्यूटर माना जाता था। लेकिन जो कंप्यूटर आज इस्तेमाल कर रहे हैं वह सिर्फ चार्ल्स बैबेज की कोशिशों के द्वारा ही संभव हो पाया है। वैसे तो कंप्यूटर के फील्ड में बहुत सारे वैज्ञानिकों ने अपना रोल निभाया था जैसे कि पर्सनल कंप्यूटर का आविष्कार जॉन ब्लैंकेट बेकर ने किया है जबकि लैपटॉप का आविष्कार एडम ऑस्बॉर्न ने किया है। लेकिन कंप्यूटर को बनाने का प्रोसेस चार्ल्स बैबेज द्वारा शुरू किया गया था इसलिए ही उन्हें फादर ऑफ कंप्यूटर के नाम से भी जाना जाता है। अब अगर कंप्यूटर के बनने की कहानी की बात करें तो कंप्यूटर को बनाने की शुरुआत 1830 के समय में चार्ल्स बैबेज के द्वारा ही की गई थी। यह प्लानिंग असल में किसी कंप्यूटर को बनाने की नहीं थी, बल्कि उन्होंने एक एनालिटिकल इंजन बनाने की प्लानिंग की थी। 

Charles Babbage
Charles Babbage

एनालिटिकल इंजन का मतलब यह होता है कि बहुत बड़े नंबर को एक साथ जोड़ा जा सके और यही कंप्यूटर के फील्ड में एक शुरुआत थी, जिसके बाद फिर उन्होंने इस डिवाइस के लिए काम करना शुरू कर दिया और 1822 में उन्होंने डिफरेंस इंजन का आविष्कार किया, जिसे सबसे पहला प्रोग्रामेबल कंप्यूटर माना जाता है। प्रोग्रामेबल कंप्यूटर का मतलब है जिसे पहले से एनालिटिक करने के लिए प्रोग्राम किया गया था। इसके बाद 1833 में चार्ल्स बैबेज ने एनालिटिकल इंजन का आविष्कार करना शुरू किया, जो एक जरनल पर्पस कंप्यूटर था, लेकिन पैसे की कमी होने के कारण वह इस काम को पूरा नहीं कर सके। 1871 में चार्ल्स बैबेज की मौत हो गई, जिसके बाद उनका एनालिटिकल इंजन बनाने का सपना पूरा नहीं हो पाया। चार्ल्स बैबेज की मौत के बाद इस क्षेत्र में काम होना लगभग बंद हो गया था, लेकिन उनकी मौत के करीब चार दशक यानी 40 साल बाद 1888 में चार्ल्स बैबेज के बेटे हेनरी बैबेज ने इस काम को पूरा करने का जिम्मा अपने सर पर लिया और जो काम भाप से नहीं हो पाया था उसे बेटे ने फाइनली पूरा करके दिखाया, जिससे दुनिया को मिल सके। एनालिटिकल इंजन। वही इंजन जिससे सभी तरह की कैलकुलेशन की जा सकती थी। जिसके बाद दौर बदलता रहा और आई 20वीं सदी, जिसमें साल 1937 में जॉन विन्सेंट, अटैना और क्लिफर्ड बैरी नाम के दो लोगों के द्वारा एबीसी यानी 1800 बैरी कंप्यूटर का आविष्कार किया गया, जिसका इस्तेमाल एनालिटिक इंजन की जगह बहुत सारी कैलकुलेशन के लिए किया जाने लगा था। फिर 1938 में एक बेहतरीन प्रोग्रामेबल कंप्यूटर बनाया गया जिसका नाम था जीवन जिसे कॉनरैड यूज के द्वारा डिजाइन किया गया था

और फिर 1945 में जे प्रास्पर एकट और जॉनी मैकलीन के द्वारा दुनिया का सबसे पहला इलेक्ट्रॉनिक कंप्यूटर जिसे एन1 यानी की इलेक्ट्रॉनिक न्यूमेरिकल, इंटीरियर एंड कंप्यूटर कहते हैं, उसके आविष्कार किया गया। फिर 23 दिसंबर 1947 में विलियम शॉक ले जॉन बाडी और वॉल्टर हाउस ब्रेटन द्वारा ट्रांजिस्टर का आविष्कार किया गया जो कि कंप्यूटर के फील्ड में बहुत ही यूजफुल साबित हुआ। ट्रांजिस्टर के आ जाने के बाद कंप्यूटर के साइज में भी काफी चेंजेस होने लगे। जिस कंप्यूटर को रखने के लिए एक पूरे कमरे की जरूरत पड़ती थी। ट्रांजिस्टर के आविष्कार के बाद उस कंप्यूटर का साइज भी छोटा हो गया, जिसे कि आसानी से हैंडल किया जा सकता था। 1975 में दुनिया का सबसे पहला पर्सनल कंप्यूटर एल स्टेयर जीरो जीरो ईडी रॉबर्ट के द्वारा इंट्रोड्यूस किया गया। लेकिन कई लोगों के द्वारा 1971 में लॉन्च किया गया कैन बैक आई कंप्यूटर को ही दुनिया का सबसे पहला पर्सनल कंप्यूटर माना जाता है। पर्सनल कंप्यूटर यानी वही कंप्यूटर जिसे एक आम इंसान अपनी समझ और जरूरत के हिसाब से इस्तेमाल कर सके। इस कंप्यूटर के लॉन्च के साथ ही कंप्यूटर फील्ड में एक नई टर्म पर्सनल कंप्यूटर का लॉन्च किया गया, जिसे आज शॉर्ट फॉर्म में पीसी कहते हैं। क्योंकि कंप्यूटर का साइज बड़ा था और इसे एक जगह से दूसरी जगह नहीं ले जाया जा सकता था और ना ही इसे बिना बिजली के इस्तेमाल किया जा सकता था। इसीलिए इस चीज की कमी भी दुनिया भर के इंजीनियर्स में खलने लगी थी। जिसका एक ही इलाज था कि कैसा कंप्यूटर बनाया जाए। जिसमें इसका सीपीयू अलग से ना होकर स्क्रीन के साथ ही मौजूद हो और इसके साथ ही साथ उसे चलाने के लिए उसमें

बैटरी का इस्तेमाल किया जा सके। इन्हीं सब रिक्वायरमेंट पर काम करने के बाद दुनिया की ख्वाहिश को पूरा करने के लिए 1981 में एडम ऑस्बॉर्न ने सबसे पहले लैपटॉप का आविष्कार किया। जिसे आप अपने लैपटॉप या गोद में रखकर भी चला सकते थे। लैपटॉप के लिए अलग से किसी पैरीफेरल डिवाइस की जरूरत नहीं थी, बल्कि इसमें पहले से ही टचपैड, कीबोर्ड, माउस, स्पीकर, माइक्रोफोन सभी फीचर्स मौजूद थे। इसीलिए इसने मार्केट में लॉन्च होते ही बहुत सफलता हासिल कर ली और लोगों के बीच आज तक इस स्कीम पर हंस बनी हुई है। जब इस लैपटॉप को मार्केट में पहली बार लॉन्च किया गया तब लैपटॉप की कीमत 795 डॉलर्स थी। लेकिन इसकी इतनी ज्यादा कीमत होने के बाद भी बहुत सारे लोगों ने इसके अनोखे फीचर के कारण और ज्यादा सुविधा मिलने के कारण इसे उतने ही महंगे दाम पर खरीदा। दुनिया की कहानी सुनाते सुनाते अपना देश भी याद आ जाता है। 1952 में भारत में कंप्यूटर युग की शुरुआत को माना जाता है, जब भारतीय सांख्यिकी संस्थान यानी इंडियन स्टैटिस्टिकल इंस्टीट्यूट, कोलकाता में पहले कंप्यूटर की शुरुआत हुई। इस आईएसआई में इस्तेमाल होने वाला पहला एनालॉग कंप्यूटर भारत का पहला कंप्यूटर था। यह कंप्यूटर 10 बाई 10 की मैट्रिक्स को हल कर सकता था। इसी समय भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरू में भी एक एनालॉग कंप्यूटर स्थापित किया गया, जिसका प्रयोग डिफरेंस एशियन के एनालिसिस के रूप में किया गया। इसके बाद 1956 में भारत के आईएसआई कोलकाता में भारत का प्रथम इलेक्ट्रॉनिक डिजिटल कंप्यूटर एचईसी टू एम को लाया गया और इसके साथ ही भारत जापान के बाद एशिया का दूसरा ऐसा देश बन गया जिसने कंप्यूटर तकनीक को अपनाया था। 

 अब तक जो भी कंप्यूटर भारत में इस्तेमाल हुए थे वह एक तरह से विदेश से लाए गए थे। जिसके बाद 1966 में भारत का पहला कंप्यूटर आईसीयू को डेवलप किया गया। इस कंप्यूटर को दो संस्थाओं भारतीय सांख्यिकी संस्थान और कोलकाता की जाधवपुर यूनिवर्सिटी ने मिलकर तैयार किया था। इसी कारण इसे आईसीयू नाम दिया गया। आईसीयू एक ट्रांजिस्टर से लैस कंप्यूटर था। इस कंप्यूटर का विकास भारतीय कंप्यूटर तकनीक के लिए बहुत इम्पोर्टेन्ट था। हालांकि यह कंप्यूटर व्यावसायिक कंप्यूटिंग की जरूरतों को पूरा नहीं करता था, जिस कारण से इसका प्रयोग किसी स्पेशल काम के लिए नहीं किया गया। इसके बाद 90 के दशक में भारत का पहला सुपर कंप्यूटर परम एट हंड्रेड का विकास किया गया जिसका मतलब था पैरलल मशीन जो कि आज सुपर कंप्यूटर की एक सीरीज है। परम का प्रयोग अलग अलग क्षेत्रों में किया गया। बायोइंफॉर्मेटिक्स मौसम विज्ञान और केमिकल साइंस के क्षेत्र में सुपर कंप्यूटर लोगों की पहली पसंद बन गया। हालांकि पर्सनल कंप्यूटर के आ जाने के कारण आज भारत के घरों में ऑफिसों में पर्सनल कंप्यूटर ही प्रयोग किया जाता है। लेकिन यह बात भुलाई नहीं जा सकती है कि लॉग मेनफ्रेम और सुपर कंप्यूटर ने भारत को एक विकासशील देश बनाने में बहुत बड़ा रोल निभाया है। आज भारतीय बाजार में भी बड़ी संख्या में लैपटॉप की बिक्री देखने को मिलती है और आज लगभग हर घर में एक कंप्यूटर की बात जरूर है जो कि लोगों की जिंदगियों को आसान बना रहा है। आपको क्या लगता है?

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