VOYAGER BIG SOFTWARE UPDATE : NASA ने VOYAGER को अपडेट किया “क्या है ये” आयए जानते ?

VOYAGER: हम में बहुत ही कम लोग है जो इनके बाड़े में जानते, चलो दोस्तों आज में बताता हु VOYAGER आखिर हैं क्या, और NASA  इन्हें Update क्यों कर रहे और इन्हें कब और कैसे बनाया था आपके  मन ये सवाल आ रहां है की इनके बाड़े में पहली बार सुन रहा हु, कोई नही में आप को पूरा क्लियर कर दूंगा चलिए  हम आगे और पड़ते हैं |

हमारी पृथ्वी, हमारे सोलर सिस्टम की बाउंड्री के बाहर वहा पर है, नासा का वॉयजर स्पेस वही स्पेस प्रोब जो 70 के दशक से एक गोल्डन रिकॉर्ड में हम पृथ्वीवासियों की तस्वीरें और आवाजें लेकर दौड़ रहा है | अभी हाल ही में नासा ने हमसे इतने दूर मौजूद प्रोब में एक सॉफ्टवेयर अपडेट इंस्टॉल किया है। पर सवाल है आखिर कैसे हम पृथ्वीवासी यहां पर कंप्यूटर में एक सॉफ्टवेयर अपडेट इंस्टॉल करते हैं तो उसमें कई सारे दिक्कतें आती है। तो इतनी पेन पॉइंट और बिना किसी ग्लेज के नासा वालों ने यह कारनामा कैसे करके दिखाया? और ऊपर से 7 के दशक की टेक्नोलॉजी पर चलने वाले वॉयजर की स्टोरेज कैपेसिटी इतनी कम है कि उसमें सिंपल सी फोटो को डालने के लिए भी उसे इतना ज्यादा ब्लर होने तक कम्प्रेस करना पड़ेगा और तब जाकर शायद वह उसके कंप्यूटर में अपलोड भी हो पाए। तो ऐसे में नासा वालों ने एक पूरा का पूरा सॉफ्टवेयर अपडेट इतने कम स्टोरेज स्पेस में आखिर समाया कैसे? साथ ही आपको यह पता नहीं होगा। पर वॉयजर वन का ओरिजिनल मिशन में ही खत्म हो चुका था जब उसने ज्यूपिटर सैटर्न के मून टाइटन के फोटो खींचकर भेजे थे। अब मिशन खत्म हो चुका था। उस मिशन पर काम करने वाले सभी साइंटिस्ट भी 70, 80, 90 सालो के हो चुके थे। लेकिन आप जानते हैं की टीम के मेंबर्स को बूढ़े होने के बावजूद भी रिटायरमेंट लेने की परमिशन नहीं थी। वह सिर्फ तभी रिटायर हो सकते अगर उन दोनों वॉयजर प्रोब में से एक प्रोब रिटायर हो जाए। सो, आखिर इस मिशन में ऐसी क्या बात है जो नासा अपने ओरिजिनल वॉयजर टीम को उनके आखिरी समय तक पकड़कर रखना चाहता है? क्या वॉयजर स्पेस से कुछ ऐसी इन्फर्मेशन नासा वालों तक पहुंचा रहा है जो नासा के लिए टॉप सीक्रेट है? वेल इसके बारे में क्लैरिटी से हमें तब समझ में आएगा जब हम यह जानेंगे कि आखिर वॉयजर वन के साथ ऐसा क्या हुआ कि लॉन्च के 5 साल  बाद अचानक से एक दिन नासा उसे अपडेट करने पर मजबूर हो गया।

Voyager
Voyager

 इस जर्नी में वह रेग्युलरली नासा को इंटरस्टेलर स्पेस से नए नए अपडेट्स भेजता। लेकिन कुछ सालों बाद 2002 में अचानक एक दिन नासा के Computer पर वॉयेजर से ज़ीरो और वंस के रूप में Strange Signal  फ्लैश होने लग गए। अब इन Strange Signal  को देखकर नासा के साइंटिस्ट खुश हो गए क्योंकि उन्हें ऐसा लगा। वॉयजर प्रोब में जो उन्होंने गोल्डन रेकॉर्ड्स भेजे, उसमें मौजूद सारी पृथ्वी की जानकारी शायद किसी के हाथ लग गई है और वह उस डेटा को डीकोड करके हमसे संपर्क बनाने की कोशिश कर रहा है। लेकिन फिर पूरे एक साल तक उस डेटा को डीटेल में स्टडी करने के बाद साइंटिस्ट को यह पता चला कि उन्होंने इस Signal को लेकर जो अंदाजा लगाया था, वह गलत था और असल में इस विचित्र Signal के पीछे किसी और चीज़ का ही हाथ था। नासा के वॉयजर प्रोब में टोटल तीन ऑनबोर्ड कंप्यूटर्स है। पहला फ्लाइट डाटा सिस्टम जो वॉयजर पर लगे सभी साइंस इंस्ट्रूमेंट से डेटा को कलेक्ट करके स्टोर करता है। दूसरा है एट्टीट्यूड आर्टिकिल मिशन कंट्रोल सिस्टम एसीएस जो वॉयजर की अलाइनमेंट और पोजिशन को कंट्रोल करता है और तीसरा है उसका मेन कंप्यूटर कंप्यूटर कमांड सिस्टम। सीसीएस, जो इन दोनों सिस्टम्स के साथ वॉयजर के सभी सिस्टम को कंट्रोल करता है। जब वॉयजर ब्रम्हांड में दौड़ रहा होता है तब ये तीनों सिस्टम्स इंडिविजुअल वॉयजर के सेंसर्स से डेटा को कलेक्ट करके उसे बायनरी कोड यानी कि इस तरह के जीरो और वांस के रूप में कन्वर्ट करते हैं। और फाइनली जब यह डेटा इकट्ठा हो जाता है तो फिर इस बायनरी कोड को एक टीएमयू जो कि टेलीमेट्री मॉड्यूलेशन यूनिट नाम का एक डेटा ट्रांसमिशन डिवाइस है, उसके जरिए पृथ्वी पर भेज देता है। जिसके बाद पृथ्वी पर बैठे वॉयजर प्रोजेक्ट के बूढ़े साइंटिस्ट फिर उसे मिलकर डीकोड करते हैं।

NASA COMPUTER SYSTEM
NASA COMPUTER SYSTEM

 

अब रीसेंटली हुआ क्या कि वॉयजर के इन सिस्टम्स में दो मेजर प्रॉब्लम्स आ गए। पहली प्रॉब्लम यह थी कि इन तीन ऑनबोर्ड कंप्यूटर्स में से एसईएस यानी कि वॉयजर वन को दिशा दिखाने वाला कंप्यूटर ही खराब हो गया। सो वह प्रॉपरली टीएमयू के साथ कम्यूनिकेट नहीं कर पा रहा था। और इसी इनकरेक्ट कम्यूनिकेशन की वजह से नासा के सिस्टम पर कंटीन्यूअस जीरो और वांस का एकदम रैंडम Signal फ्लैश होने लगा। और दूसरी प्रॉब्लम यह थी कि वॉयजर के कम्यूनिकेशन एंटेना को पृथ्वी की तरफ पॉइंट करने वाले उसके थ्रस्टर्स भी धीरे धीरे खराब हो रहे थे। और  वॉयजर में ऐसे छोटे फ्यूल पाइप से फ्यूल इग्नाइट होकर थ्रस्टर्स में जाता है। लेकिन इस पर प्रॉब्लम यह होती है कि थ्रस्टर्स के हर फायरिंग के बाद जो फ्यूल बर्न नहीं होता, वह पाइप्स में जमा होने लगता है। और अब जबकि हम सब जानते हैं, वॉयजर वन सेवेन में लॉन्च हुआ था और तब से लेकर आज तक यानी 46 Year  से Continue उसके थ्रस्टर्स फायर कर रहे हैं और इस वजह से इन पाइप्स में इतना कचरा जमा हो गया है कि उसके थ्रस्टर्स करीब करीब फेल होने के कगार पर पहुंच चुके थे। और अब अगर यह थ्रस्टर्स पूरी तरह से काम करना बंद कर देते तो नासा वॉयजर के एंटेना को पृथ्वी के तरफ पॉइंट नहीं कर सकता था और यह उसके लिए एक बहुत बड़ा सेटबैक होता था। मिशन के ऑब्जेक्टिव मीट नहीं हो पाते,तो आपने ईस से क्या Knowledge मिला | Click Here

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